राष्ट्र चलाने के लिए किसी ना किसी भाषा की आवश्यकता पड़ती है। वह भाषा राजभाषा कहलाती है। अपने समय में संस्कृत पाली महाराष्ट्र प्राकृत राजभाषा रही है।
राष्ट्रभाषा की आवश्यकता सिद्ध कीजिये ?
हिंदी प्रदेश में उर्दू प्रतिष्ठित रहे, यद्यपि राजस्थान और मध्य प्रदेश के देसी राज्यों में हिंदी माध्यम से सारा कामकाज होता रहा। राष्ट्रीय चेतना के विकास के साथ राजभाषा को राजपद दिलाने की मांग उठी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र महर्षि दयानंद सरस्वती लोकमान्य तिलक गंगाधर महात्मा गांधी और बहुत से अन्य नेताओं और जनसाधारण ने अनुभव किया कि हमारे देश का राज्य का काम हमारी भाषा में होना चाहिए और वह भाषा हिंदी हो सकती है।
हिन्दी संस्कृत कि उत्तराधिकारी है और सभी भारतीय भाषाओं की अपेक्षा सरल। इन विशेषताओं के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही हिंदी को भारत की संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
स्वतंत्रता के बाद राज्य सत्ता जनता के हाथ मे आई। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह आवश्यक हो गया कि देश का राजकाज लोग की भाषा में हो तथा राजभाषा के रूप में हिंदी को एकमत से स्वीकार किया गया।
14 सितंबर 1949 ईस्वी को भारत के संविधान में हिंदी को मान्यता प्रदान की गई तब से राज्य कार्यों में इसके प्रयोग का विकास क्रम आरंभ हो गया।
संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है।
राजभाषा शब्द अंग्रेजी के ऑफिशियल लैंग्वेज का पर्याय है विधिक रूप से इस शब्द का प्रयोग स्वतंत्र भारत के संविधान में सर्वप्रथम किया गया है।
भारत के संविधान में राजभाषा की संवैधानिक स्थिति
1. अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा का उल्लेख है।
2. अनुच्छेद 344 में राजभाषा के लिए आयोग और संसद की समिति का उल्लेख है।
3. अनुच्छेद 343 346 347 में प्रादेशिक भाषाएं अर्थात राज्य की राजभाषा ओं का उल्लेख है।
4. अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा अधिनियम विधायकों वादी की भाषा का उल्लेख है।
5. अनुच्छेद तीन सौ उनचास में भाषा संबंधी कुछ विधियों को अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया का उल्लेख।
6. अनुच्छेद 350 में व्यथा के निवारण के लिए प्रयुक्त भाषा प्राथमिकता पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं तथा भाषाई अल्पसंख्यक के लिए विशेष अधिकारी।
7. अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश आदि का उल्लेख है।
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